घर से निकलते ही - घर समझ आया।
मेरा नाम कुलदीप है, मैं 21 वर्ष का हूँ, और स्वतंत्र तालीम से 8 साल से जुड़ा हुआ हूँ | कुछ समय पहले मेरे घर वाले मेरे काम से बहुत ज्यादा परेशान थे, क्योंकि उन्हें यह लगता था कि मैं कोई ऐसी नौकरी करू जिससे पैसे आए, अगर कोई परिवार में पूछे कि आपका बेटा क्या कर रहा है तो उसको बता पाए एक नौकरी का नाम लेके | परन्तु ऐसा नही था, क्योंकि स्वतंत्र तालीम में काम करके मैंने यह समझ लिया था, कि अपने साथ-साथ उनको भी लेकर चलूँगा जो चलने में सक्षम है लेकिन उन्हें साथ चलने नही दिया जाता | यह समझ मेरी तब बनी जब मैं गाँव में गया वहां के समुदाय को देखा | छोटे-छोटे बच्चो के पास इतने अच्छे आईडिया थे, उन्होंने आसपास कि वस्तु से पंखा, घड़ा, चिड़िया और हवाई जहाज बनाया | मैंने उनसे पूछा कि आप लोगो ने यह क्यों बनाया इससे क्या सिखा | बच्चो का जवाब था कि भैया हम जो चीज़े करते है उससे सिखने के साथ-साथ समझते भी है | छोटे-छोटे बच्चो को यह बात पूरी तरह से पता थी की वह जो कर रहे है वो क्यों कर रहे है और उससे उनकी समझ में क्या बदलाव या प्रशन आ रहे है | यह देखकर मैंने यह सोच लिया था की अब मैं छोटे बच्चो के साथ बहुत सारी गतिविधिया करूँगा जो मज़ेदार हों | उसके बाद से मैंने बच्चो के साथ खेल, पजल, पपेट शो, विज्ञानं के प्रयोग, उनकी कोई दिक्कत उस पर मॉडल बनाया, कोई चैलेंज हुआ उसमे भाग लिया, किताब पढ़ के जो समझ बनी वह सबके साथ चर्चा कराया | यह सब सही से बच्चो के साथ चल रहा था और मेरा खुद का ज्ञान जो मैंने स्कूल के द्वारन नही ले पाया था उसको बच्चो के साथ करके समझा | लेकिन घर वालो का अभी भी मानना था की कोई काम करो क्योंकि काम करोगे तभी आगे कुछ होगा | मैंने बहुत समझाया कि मेरे साथ जो दिक्कत थी पढाई को लेकर वह और बच्चो के साथ है और उनको अगर अभी समझ नही आया तो पढाई छोड़ देंगे | जिस पर पापा का कहना कि उनके पढाई न करने से तुम्हे क्या दिक्कत होगी | मेरे को दिक्कत यह होगी की मैंने अपने काम को पूरी तरह से नही किया इसलिए वह नही पढ़ पाए | इस तरह की बहस 5 साल तक चली कभी डाट खाता कभी घर से बहार निकल दिया जाता परन्तु बच्चो के साथ मुझे काम करना था इसलिए मैं अपनी बात पर अड़ा रहा | उसके बाद से घर वालो ने मेरे से कुछ भी बोलना बंद कर दिया लेकिन हमारी बातचीत में कोई अंतर नही था | कुछ समय बाद जब मैं टीचर को ट्रेनिग देने जाने लगा, सभी को घर पर बताया की मैं टीचरो को पढने के लिए जाता हूँ | उसके बाद से पापा के पास परिवार से जिसका भी कॉल आया उन्होंने पूछा कि अभी आपका बेटा क्या करता है | पापा ने पूरे गर्व से कहां की मेरा बेटा टीचर्स को पढता है, साथ ही गाँव जाके बच्चो को पढता है | उसके बाद से आज तक घर में कोई भी काम हो मेरे से जरुर पूछा जाता है | परिवार में अब और लोगो को मेरा उदहारण दिया जाता है |
“घर वालों से ठीक से बात ना हो पाने से लेकर, अपने काम पर उन्हें गर्व करा पाने और घर में पैसे लगा पाने तक, मैंने एक लम्बा सफ़र तय किया है। इस लेख के ज़रिए मैं एक जगह रुक कर, इस बात पर पीछे मुड़कर मुस्कुरा पाया!”
मेरा नाम कुलदीप है, मैं 21 वर्ष का हूँ, और स्वतंत्र तालीम से 8 साल से जुड़ा हुआ हूँ | कुछ समय पहले मेरे घर वाले मेरे काम से बहुत ज्यादा परेशान थे, क्योंकि उन्हें यह लगता था कि मैं कोई ऐसी नौकरी करू जिससे पैसे आए, अगर कोई परिवार में पूछे कि आपका बेटा क्या कर रहा है तो उसको बता पाए एक नौकरी का नाम लेके | परन्तु ऐसा नही था, क्योंकि स्वतंत्र तालीम में काम करके मैंने यह समझ लिया था, कि अपने साथ-साथ उनको भी लेकर चलूँगा जो चलने में सक्षम है लेकिन उन्हें साथ चलने नही दिया जाता | यह समझ मेरी तब बनी जब मैं गाँव में गया वहां के समुदाय को देखा | छोटे-छोटे बच्चो के पास इतने अच्छे आईडिया थे, उन्होंने आसपास कि वस्तु से पंखा, घड़ा, चिड़िया और हवाई जहाज बनाया | मैंने उनसे पूछा कि आप लोगो ने यह क्यों बनाया इससे क्या सिखा | बच्चो का जवाब था कि भैया हम जो चीज़े करते है उससे सिखने के साथ-साथ समझते भी है | छोटे-छोटे बच्चो को यह बात पूरी तरह से पता थी की वह जो कर रहे है वो क्यों कर रहे है और उससे उनकी समझ में क्या बदलाव या प्रशन आ रहे है | यह देखकर मैंने यह सोच लिया था की अब मैं छोटे बच्चो के साथ बहुत सारी गतिविधिया करूँगा जो मज़ेदार हों | उसके बाद से मैंने बच्चो के साथ खेल, पजल, पपेट शो, विज्ञानं के प्रयोग, उनकी कोई दिक्कत उस पर मॉडल बनाया, कोई चैलेंज हुआ उसमे भाग लिया, किताब पढ़ के जो समझ बनी वह सबके साथ चर्चा कराया | यह सब सही से बच्चो के साथ चल रहा था और मेरा खुद का ज्ञान जो मैंने स्कूल के द्वारन नही ले पाया था उसको बच्चो के साथ करके समझा | लेकिन घर वालो का अभी भी मानना था की कोई काम करो क्योंकि काम करोगे तभी आगे कुछ होगा | मैंने बहुत समझाया कि मेरे साथ जो दिक्कत थी पढाई को लेकर वह और बच्चो के साथ है और उनको अगर अभी समझ नही आया तो पढाई छोड़ देंगे | जिस पर पापा का कहना कि उनके पढाई न करने से तुम्हे क्या दिक्कत होगी | मेरे को दिक्कत यह होगी की मैंने अपने काम को पूरी तरह से नही किया इसलिए वह नही पढ़ पाए | इस तरह की बहस 5 साल तक चली कभी डाट खाता कभी घर से बहार निकल दिया जाता परन्तु बच्चो के साथ मुझे काम करना था इसलिए मैं अपनी बात पर अड़ा रहा | उसके बाद से घर वालो ने मेरे से कुछ भी बोलना बंद कर दिया लेकिन हमारी बातचीत में कोई अंतर नही था | कुछ समय बाद जब मैं टीचर को ट्रेनिग देने जाने लगा, सभी को घर पर बताया की मैं टीचरो को पढने के लिए जाता हूँ | उसके बाद से पापा के पास परिवार से जिसका भी कॉल आया उन्होंने पूछा कि अभी आपका बेटा क्या करता है | पापा ने पूरे गर्व से कहां की मेरा बेटा टीचर्स को पढता है, साथ ही गाँव जाके बच्चो को पढता है | उसके बाद से आज तक घर में कोई भी काम हो मेरे से जरुर पूछा जाता है | परिवार में अब और लोगो को मेरा उदहारण दिया जाता है |
“घर वालों से ठीक से बात ना हो पाने से लेकर, अपने काम पर उन्हें गर्व करा पाने और घर में पैसे लगा पाने तक, मैंने एक लम्बा सफ़र तय किया है। इस लेख के ज़रिए मैं एक जगह रुक कर, इस बात पर पीछे मुड़कर मुस्कुरा पाया!”
घर पर परिवार में दोस्तों ने कॉलेज में सभी ने बहुत ताने मरे लेकिन मुझे अपने काम पर गर्व और विश्वास था | जो लोग मुझे जिस काम के लिए ताने मरते थे आज वह सब मुझे उसी काम के लिए शाबाशी देते है, और ये मेरे लिए एक बड़ी बात है। उम्मीद करता हूँ की मैं आगे भी खुद को ऐसे हाई बेहतर बनाता रहूँ, और खुद पर भरोसा और गर्व दोनो बनाए रखूँ।