मेरा नाम जूली सिंह है और मैं लखनऊ की ही रहने वाली हूं। मुझे बचपन से ही संगीत बहुत पसंद हैं, साथ ही मुझे पढ़ना भी बहुत अच्छा लगता है और घर में कुछ ना कुछ क्राफ्ट करती रहती हूँ, पर संगीत से लगाव थोड़ा हट के है।
संगीत में मेरी बढ़ती हुई रुची:
जब मैं आठवीं में आई तो अपने स्कूल मे 26 जनवरी के दिन गाने की प्रतियोगिता में भाग लिया। और जब मैंने गाया तो हमारे प्रधानाचार्य जी ने मुझे शाबाशी देते हुए कहा कि तुम्हे आगे और सीखना चाहिए। घर आते ही मैंने पापा और मम्मी को बताया और वो भी खुश हुए। लेकिन उनके लिए हमेशा से मेरा ओआधाइ पे ध्यान देना ज़्यादा ज़रूरी था। और मुझे भी कहीं ना कहीं पढ़ाई ही ज़्यादा ज़रूरी लगती थी।
मगर जब मैं 9-10 वीं कक्षा में आई तो मेरे दिमाग़ में रह-रह के आता था ki मैं अपनी आगे की पढ़ाई किस विषय में करूं जो, आगे भी काम आए। जब भी कभी मेरे पास खाली समय होता था, मैं कुछ गाने के वीडियो देख लिया करती थी। एक दिन ऐसे ही अचानक एक दिन इंडियन आइडल रियलिटी शो के कुछ वीडियो देखे। फिर लगा इसके बारे में और जानने की इच्छा हुई। “मैं इसमें कैसे जा सकती हूं?”, “क्या कर सकती हूं?” यह सोचने लगी।
मैंने अपनी दोस्त कोमल से शेयर किया तो उसने मुझसे कहा “तुम्हें आगे पढ़ाई तो करनी है तो क्यों ना तुम संगीत के विषय में पढ़ाई कर लो?” उसने बताया है जिस स्कूल में वो पढ़ती है, वहां संगीत विषय भी है और मैं वहां एडमिशन ले सकती हूं। मैं यह सौंकार बहुत खुश हुई और मैंने घर में सबको बताया। पहले तो सबने बहुत रोकने की कोशिश की, पर मैंने जिद कर ली और आखिर दसवीं के बाद उसके स्कूल में एडमिशन ले ही लिया। फिर मैंने 11वीं और 12वीं में संगीत विषय लेकर पढ़ाई की, और वह सारी क्लैसेज़ मेरे लिए यादगार हैं। जब भी हमारी संगीत की मैम हमे सिखाती थीं, मुझे उनकी तरह ही गाने और बनने कि इच्छा होती थी। फिर मैंने मैम से एक दिन पूंछा कि मैं 12वीं के बाद और कहां संगीत सीख सकती हूं? तो उन्होंने बताया कि लखनऊ में भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय है जहां तुम एडमिशन ले सकती हो। फिर मैंने इसके बारे में और जानकारी लेना शुरू किया, और कालेज कहां है और इसमे दिए गए कोर्सेज के बारे में पता किया।मैं बहुत खुश थी.. ऐसा लग रहा था कि मुझे मेरी मंजिल मिल गई हो।
संगीत में मेरी बढ़ती हुई रुची:
जब मैं आठवीं में आई तो अपने स्कूल मे 26 जनवरी के दिन गाने की प्रतियोगिता में भाग लिया। और जब मैंने गाया तो हमारे प्रधानाचार्य जी ने मुझे शाबाशी देते हुए कहा कि तुम्हे आगे और सीखना चाहिए। घर आते ही मैंने पापा और मम्मी को बताया और वो भी खुश हुए। लेकिन उनके लिए हमेशा से मेरा ओआधाइ पे ध्यान देना ज़्यादा ज़रूरी था। और मुझे भी कहीं ना कहीं पढ़ाई ही ज़्यादा ज़रूरी लगती थी।
मगर जब मैं 9-10 वीं कक्षा में आई तो मेरे दिमाग़ में रह-रह के आता था ki मैं अपनी आगे की पढ़ाई किस विषय में करूं जो, आगे भी काम आए। जब भी कभी मेरे पास खाली समय होता था, मैं कुछ गाने के वीडियो देख लिया करती थी। एक दिन ऐसे ही अचानक एक दिन इंडियन आइडल रियलिटी शो के कुछ वीडियो देखे। फिर लगा इसके बारे में और जानने की इच्छा हुई। “मैं इसमें कैसे जा सकती हूं?”, “क्या कर सकती हूं?” यह सोचने लगी।
मैंने अपनी दोस्त कोमल से शेयर किया तो उसने मुझसे कहा “तुम्हें आगे पढ़ाई तो करनी है तो क्यों ना तुम संगीत के विषय में पढ़ाई कर लो?” उसने बताया है जिस स्कूल में वो पढ़ती है, वहां संगीत विषय भी है और मैं वहां एडमिशन ले सकती हूं। मैं यह सौंकार बहुत खुश हुई और मैंने घर में सबको बताया। पहले तो सबने बहुत रोकने की कोशिश की, पर मैंने जिद कर ली और आखिर दसवीं के बाद उसके स्कूल में एडमिशन ले ही लिया। फिर मैंने 11वीं और 12वीं में संगीत विषय लेकर पढ़ाई की, और वह सारी क्लैसेज़ मेरे लिए यादगार हैं। जब भी हमारी संगीत की मैम हमे सिखाती थीं, मुझे उनकी तरह ही गाने और बनने कि इच्छा होती थी। फिर मैंने मैम से एक दिन पूंछा कि मैं 12वीं के बाद और कहां संगीत सीख सकती हूं? तो उन्होंने बताया कि लखनऊ में भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय है जहां तुम एडमिशन ले सकती हो। फिर मैंने इसके बारे में और जानकारी लेना शुरू किया, और कालेज कहां है और इसमे दिए गए कोर्सेज के बारे में पता किया।मैं बहुत खुश थी.. ऐसा लग रहा था कि मुझे मेरी मंजिल मिल गई हो।
खुद को घर वालो और समाज के दबाव से रोकना:
मुझे जब इस कालेज के बारे में पता चला तो मैंने घर पे एडमिशन लेने की बात की। घर में सबने मुझे डांटा और बहुत सी वजहें दीं यहाँ अड्मिशन ना लेने की, जैसे “बहुत दूर है!”, या “हमारे पास इतने पैसे नहीं है!” या, “यह सब करके कुछ होने वाला तो है नहीं, और आगे पढ़ने की जरूरत भी नहीं है। करना है तो कुछ और करो वरना ये सब गाना बजाना नहीं!” आदि। यह सब सुनके मैं भी सोच में पड़ गई कि मैं भी इतने रुपए कहां से लाऊंगी? और इतनी दूर कैसे जाउंगी? बात तो ठीक थी। तो मैंने सोचा कि पास के ही कालेज में ही एडमिशन ले लेती हूं।
खुद में बदलाव की शुरुआत:
जब मैं 12वीं की पढ़ाई कर रही थी, मैं सद्भभावना ट्रस्ट नामक एक संस्था से जुड़ी, जो लड़कियों और महिलाओं को नौकरी की दुनिया में आगे ले जाने का काम करती है। तो एक दिन संस्था की एक दीदी मेरे घर आई और उन्होंने संस्था में होने वाली वर्कशॉप और कोर्सेज के बारे में मुझे बताया। मैं उन कोर्सेस से जुड़ना चाहती थी, पर कुछ बाद्धताएँ थीं, जैसे समय की। घरवाले फिर नहीं माँ रहे थे, पर इस बार भी मैंने ज़िद्द करी, पर इस बार उन्हें समझाया भी कि मेरे लिए यह कोर्सेस क्यूँ अच्छे हैं।
फिर धीरे-धीरे मैंने जाना शुरू किया तो वहां पर दी जाने वाली वर्कशॉप का मुझ पर बहुत असर हुआ। मैं समानता और असमानता को समझने लगी और अपने बारे में सोचने और बोलने लगी। इस संस्था के द्वारा ही मुझे 3 महीने की इंटर्नशिप करने के लिए स्वतंत्र तालीम भेजा गया!
अपनी धुन को पाया:
स्वतंत्र तालीम में आकर में सबसे मिली और यहां के बारे में धीरे-धीरे जाना कि यहां पर क्या-क्या होता है। पता चला कि यहां पर पपेट शो होते हैं और साथ ही जितने भी लोग यहां आते हैं वह जिन-जिन चीजों को अच्छे से कर सकते हैं,वह करते हैं। और साथ ही अलग-अलग और नई-नई चीजें भी करते रहते हैं, जैसे कि पपेट बनाने से लेकर कुछ मेकिंग करना या कुछ इलेक्ट्रॉनिक का ट्राई करना, कुछ म्यूजिक, कुछ पोयम, कुछ गाना कुछ पेंट करना। यह सब करते हुए सबको देखा और यहां आकर मुझे सबके बीच सामानता देखने को मिली। जो मेरे लिए बेहद ज़रूरी है। मैं स्वतंत्र तालीम में राहुल भैया और रिद्धि दीदी को अपने संगीत के प्रति रुचि के बारे में अक्सर बताती थी। और वो दोनो पहले लोग थे, जिहोने मुझे ना करने की वजहें नहीं, बल्कि करने के तरीक़े और सुझाव बताए। उन्होंने मुझे समझाया कि अगर तुम एडमिशन लेना चाहती हो तो अभी भी ले सकती हो। फिर मैंने भातखंडे जाकर एडमिशन की प्रक्रिया समझी। मुझे पता चला कि मैं बी.ए. के साथ-साथ वहां पर कोई कोर्स नहीं कर सकती तो ग्रैजुएशन कंप्लीट करने के बाद ही मैं वहां पर एडमिशन ले सकती हूं। ऐसा लगा कि मुझे एडमिशन के लिए बहुत ज्यादा इंतजार करना पड़ेगा। पर एक दिन रिद्धि दीदी और राहुल भैया ने भातखंडे में हो रही समर वर्कशॉप के बारे में बताया, जिस में मैं आराम से अड्मिशन ले सकती थी, और मैंने बिना समय बर्बाद किए, ठीक वही किया। वह दिन मेरे लिए सबसे खुशी का दिन था, क्योंकि जहां मैं कब से आना चाहती थी, वहां किस्मत और भैया, दीदी की वजह से आ पाई।
उस वर्कशॉप के आखिर में हमारी परफॉर्मेंस हुईं, जिसे देखने मैंने मम्मी पापा को भी बुलाया, और वह वाकायी मेरे लिए एक अनोखा पल था! पर्फ़ॉर्म कर पाने की ख़ुशी एक तरफ़ थी, और मम्मी-पापा मेरी परफॉर्मेंस देख पा रहे थे, उसकी ख़ुशी अलग! ज़िंदगी में उस दिन के बाद से कुछ तो बदला। मैंने उसके बाद स्वतंत्र तालीम में बच्चों के साथ भी खूब काम किया, कभी कविताएँ लिखीं, कभी गायीं, कभी पढ़ाया, कभी सीखा!
संगीत मेरे जीवन में जैसे मैंने चाहा था, वैसे तो नहीं आया, लेकिन उससे भी बड़े और बेहतर अन्दाज़ में आया। उमीद करती हूँ कि आगे भी सीखती-सिखाती, सुनती-गाती, नए दोस्त बनाती रहूँ और उनके साथ खूब काम करती रहूँ! :)
मुझे जब इस कालेज के बारे में पता चला तो मैंने घर पे एडमिशन लेने की बात की। घर में सबने मुझे डांटा और बहुत सी वजहें दीं यहाँ अड्मिशन ना लेने की, जैसे “बहुत दूर है!”, या “हमारे पास इतने पैसे नहीं है!” या, “यह सब करके कुछ होने वाला तो है नहीं, और आगे पढ़ने की जरूरत भी नहीं है। करना है तो कुछ और करो वरना ये सब गाना बजाना नहीं!” आदि। यह सब सुनके मैं भी सोच में पड़ गई कि मैं भी इतने रुपए कहां से लाऊंगी? और इतनी दूर कैसे जाउंगी? बात तो ठीक थी। तो मैंने सोचा कि पास के ही कालेज में ही एडमिशन ले लेती हूं।
खुद में बदलाव की शुरुआत:
जब मैं 12वीं की पढ़ाई कर रही थी, मैं सद्भभावना ट्रस्ट नामक एक संस्था से जुड़ी, जो लड़कियों और महिलाओं को नौकरी की दुनिया में आगे ले जाने का काम करती है। तो एक दिन संस्था की एक दीदी मेरे घर आई और उन्होंने संस्था में होने वाली वर्कशॉप और कोर्सेज के बारे में मुझे बताया। मैं उन कोर्सेस से जुड़ना चाहती थी, पर कुछ बाद्धताएँ थीं, जैसे समय की। घरवाले फिर नहीं माँ रहे थे, पर इस बार भी मैंने ज़िद्द करी, पर इस बार उन्हें समझाया भी कि मेरे लिए यह कोर्सेस क्यूँ अच्छे हैं।
फिर धीरे-धीरे मैंने जाना शुरू किया तो वहां पर दी जाने वाली वर्कशॉप का मुझ पर बहुत असर हुआ। मैं समानता और असमानता को समझने लगी और अपने बारे में सोचने और बोलने लगी। इस संस्था के द्वारा ही मुझे 3 महीने की इंटर्नशिप करने के लिए स्वतंत्र तालीम भेजा गया!
अपनी धुन को पाया:
स्वतंत्र तालीम में आकर में सबसे मिली और यहां के बारे में धीरे-धीरे जाना कि यहां पर क्या-क्या होता है। पता चला कि यहां पर पपेट शो होते हैं और साथ ही जितने भी लोग यहां आते हैं वह जिन-जिन चीजों को अच्छे से कर सकते हैं,वह करते हैं। और साथ ही अलग-अलग और नई-नई चीजें भी करते रहते हैं, जैसे कि पपेट बनाने से लेकर कुछ मेकिंग करना या कुछ इलेक्ट्रॉनिक का ट्राई करना, कुछ म्यूजिक, कुछ पोयम, कुछ गाना कुछ पेंट करना। यह सब करते हुए सबको देखा और यहां आकर मुझे सबके बीच सामानता देखने को मिली। जो मेरे लिए बेहद ज़रूरी है। मैं स्वतंत्र तालीम में राहुल भैया और रिद्धि दीदी को अपने संगीत के प्रति रुचि के बारे में अक्सर बताती थी। और वो दोनो पहले लोग थे, जिहोने मुझे ना करने की वजहें नहीं, बल्कि करने के तरीक़े और सुझाव बताए। उन्होंने मुझे समझाया कि अगर तुम एडमिशन लेना चाहती हो तो अभी भी ले सकती हो। फिर मैंने भातखंडे जाकर एडमिशन की प्रक्रिया समझी। मुझे पता चला कि मैं बी.ए. के साथ-साथ वहां पर कोई कोर्स नहीं कर सकती तो ग्रैजुएशन कंप्लीट करने के बाद ही मैं वहां पर एडमिशन ले सकती हूं। ऐसा लगा कि मुझे एडमिशन के लिए बहुत ज्यादा इंतजार करना पड़ेगा। पर एक दिन रिद्धि दीदी और राहुल भैया ने भातखंडे में हो रही समर वर्कशॉप के बारे में बताया, जिस में मैं आराम से अड्मिशन ले सकती थी, और मैंने बिना समय बर्बाद किए, ठीक वही किया। वह दिन मेरे लिए सबसे खुशी का दिन था, क्योंकि जहां मैं कब से आना चाहती थी, वहां किस्मत और भैया, दीदी की वजह से आ पाई।
उस वर्कशॉप के आखिर में हमारी परफॉर्मेंस हुईं, जिसे देखने मैंने मम्मी पापा को भी बुलाया, और वह वाकायी मेरे लिए एक अनोखा पल था! पर्फ़ॉर्म कर पाने की ख़ुशी एक तरफ़ थी, और मम्मी-पापा मेरी परफॉर्मेंस देख पा रहे थे, उसकी ख़ुशी अलग! ज़िंदगी में उस दिन के बाद से कुछ तो बदला। मैंने उसके बाद स्वतंत्र तालीम में बच्चों के साथ भी खूब काम किया, कभी कविताएँ लिखीं, कभी गायीं, कभी पढ़ाया, कभी सीखा!
संगीत मेरे जीवन में जैसे मैंने चाहा था, वैसे तो नहीं आया, लेकिन उससे भी बड़े और बेहतर अन्दाज़ में आया। उमीद करती हूँ कि आगे भी सीखती-सिखाती, सुनती-गाती, नए दोस्त बनाती रहूँ और उनके साथ खूब काम करती रहूँ! :)