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संगीत से मेरा नीजी रिश्ता - जूली

9/9/2024

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मेरा नाम जूली सिंह है और मैं लखनऊ की ही रहने वाली हूं। मुझे बचपन से ही संगीत बहुत पसंद हैं, साथ ही मुझे पढ़ना भी बहुत अच्छा लगता है और घर में कुछ ना कुछ क्राफ्ट करती रहती हूँ, पर संगीत से लगाव थोड़ा हट के है। 

संगीत में मेरी बढ़ती हुई रुची:

जब मैं आठवीं में आई तो अपने स्कूल मे  26 जनवरी के दिन गाने की प्रतियोगिता में भाग लिया। और जब मैंने गाया तो हमारे प्रधानाचार्य जी ने मुझे शाबाशी देते हुए कहा कि तुम्हे आगे और सीखना चाहिए।  घर आते ही मैंने पापा और मम्मी को बताया और वो भी खुश हुए। लेकिन उनके लिए हमेशा से मेरा ओआधाइ पे ध्यान देना ज़्यादा ज़रूरी था। और मुझे भी कहीं ना कहीं पढ़ाई ही ज़्यादा ज़रूरी लगती थी।

मगर जब मैं 9-10 वीं कक्षा में आई तो मेरे दिमाग़ में रह-रह के आता था ki मैं अपनी आगे की पढ़ाई किस विषय में करूं जो, आगे भी काम आए। जब भी कभी मेरे पास खाली समय होता था, मैं कुछ गाने के वीडियो देख लिया करती थी। एक दिन ऐसे ही अचानक एक दिन इंडियन आइडल रियलिटी शो के कुछ वीडियो देखे। फिर लगा इसके बारे में और जानने  की इच्छा हुई। “मैं इसमें कैसे जा सकती हूं?”, “क्या कर सकती हूं?” यह सोचने लगी। 

मैंने अपनी दोस्त कोमल से शेयर किया तो उसने मुझसे कहा “तुम्हें आगे पढ़ाई तो करनी है तो क्यों ना तुम संगीत के विषय में पढ़ाई कर लो?” उसने बताया है जिस स्कूल में वो पढ़ती है, वहां संगीत विषय भी है और मैं वहां एडमिशन ले सकती हूं। मैं यह सौंकार बहुत खुश हुई और मैंने घर में सबको बताया। पहले तो सबने बहुत रोकने की कोशिश की, पर मैंने जिद कर ली और आखिर दसवीं के बाद उसके स्कूल में एडमिशन ले ही लिया। फिर मैंने 11वीं और 12वीं में संगीत विषय लेकर पढ़ाई की, और वह सारी क्लैसेज़ मेरे लिए यादगार हैं। जब भी हमारी संगीत की मैम हमे सिखाती थीं, मुझे उनकी तरह ही गाने और बनने कि इच्छा होती थी। फिर मैंने मैम से एक दिन पूंछा कि मैं 12वीं के बाद और कहां संगीत सीख सकती हूं? तो उन्होंने बताया कि लखनऊ में भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय है जहां तुम एडमिशन ले सकती हो। फिर मैंने इसके बारे में और जानकारी लेना शुरू किया, और कालेज कहां है और इसमे दिए गए कोर्सेज के बारे में पता किया।मैं बहुत खुश थी.. ऐसा लग रहा था कि मुझे मेरी मंजिल मिल गई हो।


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खुद को घर वालो और समाज के दबाव से रोकना:

मुझे जब इस कालेज के बारे में पता चला तो मैंने घर पे एडमिशन लेने की बात की। घर में सबने मुझे डांटा और बहुत सी वजहें दीं यहाँ अड्मिशन ना लेने की, जैसे “बहुत दूर है!”, या “हमारे पास इतने पैसे नहीं है!” या, “यह सब करके कुछ होने वाला तो है नहीं, और आगे पढ़ने की जरूरत भी नहीं है। करना है तो कुछ और करो वरना ये सब गाना बजाना नहीं!” आदि। यह सब सुनके मैं भी सोच में पड़ गई कि मैं भी इतने रुपए कहां से लाऊंगी? और इतनी दूर कैसे जाउंगी? बात तो ठीक थी। तो मैंने सोचा कि पास के ही कालेज में ही एडमिशन ले लेती हूं।

खुद में बदलाव की शुरुआत:

जब मैं 12वीं की पढ़ाई कर रही थी, मैं सद्भभावना ट्रस्ट नामक एक संस्था से जुड़ी, जो लड़कियों और महिलाओं को नौकरी की दुनिया में आगे ले जाने का काम करती है। तो एक दिन संस्था की एक दीदी मेरे घर आई और उन्होंने संस्था में होने वाली वर्कशॉप और कोर्सेज के बारे में मुझे बताया। मैं उन कोर्सेस से जुड़ना चाहती थी, पर कुछ बाद्धताएँ थीं, जैसे समय की। घरवाले फिर नहीं माँ रहे थे, पर इस बार भी मैंने ज़िद्द करी, पर इस बार उन्हें समझाया भी कि मेरे लिए यह कोर्सेस क्यूँ अच्छे हैं।

फिर धीरे-धीरे मैंने जाना शुरू किया तो वहां पर दी जाने वाली वर्कशॉप का मुझ पर बहुत असर हुआ। मैं समानता और असमानता को समझने लगी और अपने बारे में सोचने और बोलने लगी। इस संस्था के द्वारा ही मुझे 3 महीने की इंटर्नशिप करने के लिए स्वतंत्र तालीम भेजा गया!

अपनी धुन को पाया:

स्वतंत्र तालीम में आकर में सबसे मिली और यहां के बारे में धीरे-धीरे जाना कि यहां पर क्या-क्या होता है। पता चला कि यहां पर पपेट शो होते हैं और साथ ही जितने भी लोग यहां आते हैं वह जिन-जिन चीजों को अच्छे से कर सकते हैं,वह करते हैं। और साथ ही अलग-अलग और  नई-नई चीजें भी करते रहते हैं, जैसे कि पपेट बनाने से लेकर कुछ मेकिंग करना या कुछ इलेक्ट्रॉनिक का ट्राई करना, कुछ म्यूजिक, कुछ पोयम, कुछ गाना कुछ पेंट करना। यह सब करते हुए सबको देखा और यहां आकर मुझे सबके बीच सामानता देखने को मिली। जो मेरे लिए बेहद ज़रूरी है। मैं स्वतंत्र तालीम में राहुल भैया और रिद्धि दीदी को अपने संगीत के प्रति रुचि के बारे में अक्सर बताती थी। और वो दोनो पहले लोग थे, जिहोने मुझे ना करने की वजहें नहीं, बल्कि करने के तरीक़े और सुझाव बताए। उन्होंने मुझे समझाया कि अगर तुम एडमिशन लेना चाहती हो तो अभी भी ले सकती हो। फिर मैंने भातखंडे जाकर एडमिशन की प्रक्रिया समझी। मुझे पता चला कि मैं बी.ए. के साथ-साथ वहां पर कोई कोर्स नहीं कर सकती तो ग्रैजुएशन कंप्लीट करने के बाद ही मैं वहां पर एडमिशन ले सकती हूं। ऐसा लगा कि मुझे एडमिशन के लिए बहुत ज्यादा इंतजार करना पड़ेगा। पर एक दिन रिद्धि दीदी और राहुल भैया ने भातखंडे में हो रही समर वर्कशॉप के बारे में बताया, जिस में मैं आराम से अड्मिशन ले सकती थी, और मैंने बिना समय बर्बाद किए, ठीक वही किया। वह दिन मेरे लिए सबसे खुशी का दिन था, क्योंकि जहां मैं कब से आना चाहती थी, वहां किस्मत और भैया, दीदी की वजह से आ पाई।

उस वर्कशॉप के आखिर में हमारी परफॉर्मेंस हुईं, जिसे देखने मैंने मम्मी पापा को भी बुलाया, और वह वाकायी मेरे लिए एक अनोखा पल था! पर्फ़ॉर्म कर पाने की ख़ुशी एक तरफ़ थी, और मम्मी-पापा मेरी परफॉर्मेंस देख पा रहे थे, उसकी ख़ुशी अलग! ज़िंदगी में उस दिन के बाद से कुछ तो बदला। मैंने उसके बाद स्वतंत्र तालीम में बच्चों के साथ भी खूब काम किया, कभी कविताएँ लिखीं, कभी गायीं, कभी पढ़ाया, कभी सीखा!

संगीत मेरे जीवन में जैसे मैंने चाहा था, वैसे तो नहीं आया, लेकिन उससे भी बड़े और बेहतर अन्दाज़ में आया। उमीद करती हूँ कि आगे भी सीखती-सिखाती, सुनती-गाती, नए दोस्त बनाती रहूँ और उनके साथ खूब काम करती रहूँ! :)  

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खुद को जानने से खुद पर गर्व कर पाने तक का सफ़र!

6/8/2024

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घर से निकलते ही - घर समझ आया।

मेरा नाम कुलदीप है,  मैं 21 वर्ष का हूँ, और स्वतंत्र तालीम से 8 साल से जुड़ा हुआ हूँ | कुछ समय पहले मेरे घर वाले मेरे काम से बहुत ज्यादा परेशान थे, क्योंकि उन्हें यह लगता था कि मैं कोई ऐसी नौकरी करू जिससे पैसे आए, अगर कोई परिवार में पूछे कि आपका बेटा क्या कर रहा है तो उसको बता पाए एक नौकरी का नाम लेके | परन्तु ऐसा नही था, क्योंकि स्वतंत्र तालीम में काम करके मैंने यह समझ लिया था, कि अपने साथ-साथ उनको भी लेकर चलूँगा जो चलने में सक्षम है लेकिन उन्हें साथ चलने नही दिया जाता | यह समझ मेरी तब बनी जब मैं गाँव में गया वहां के समुदाय को देखा | छोटे-छोटे बच्चो के पास इतने अच्छे आईडिया थे, उन्होंने आसपास कि वस्तु से पंखा, घड़ा, चिड़िया और हवाई जहाज बनाया | मैंने उनसे पूछा कि आप लोगो ने यह क्यों बनाया इससे क्या सिखा | बच्चो का जवाब था कि भैया हम जो चीज़े करते है उससे सिखने के साथ-साथ समझते भी है | छोटे-छोटे बच्चो को यह बात पूरी तरह से पता थी की वह जो कर रहे है वो क्यों कर रहे है और उससे उनकी समझ में क्या बदलाव या प्रशन आ रहे है | यह देखकर मैंने यह सोच लिया था की अब मैं छोटे बच्चो के साथ बहुत सारी गतिविधिया करूँगा जो मज़ेदार हों | उसके बाद से मैंने बच्चो के साथ खेल, पजल, पपेट शो, विज्ञानं के प्रयोग, उनकी कोई दिक्कत उस पर मॉडल बनाया, कोई चैलेंज हुआ उसमे भाग लिया, किताब पढ़ के जो समझ बनी वह सबके साथ चर्चा कराया | ​यह सब सही से बच्चो के साथ चल रहा था और मेरा खुद का ज्ञान जो मैंने स्कूल के द्वारन नही ले पाया था उसको बच्चो के साथ करके समझा | लेकिन घर वालो का अभी भी मानना था की कोई काम करो क्योंकि काम करोगे तभी आगे कुछ होगा | मैंने बहुत समझाया कि मेरे साथ जो दिक्कत थी पढाई को लेकर वह और बच्चो के साथ है और उनको अगर अभी समझ नही आया तो पढाई छोड़ देंगे | जिस पर पापा का कहना कि उनके पढाई न करने से तुम्हे क्या दिक्कत होगी | मेरे को दिक्कत यह होगी की मैंने अपने काम को पूरी तरह से नही किया इसलिए वह नही पढ़ पाए | इस तरह की बहस 5 साल तक चली कभी डाट खाता कभी घर से बहार निकल दिया जाता परन्तु बच्चो के साथ मुझे काम करना था इसलिए मैं अपनी बात पर अड़ा रहा | उसके बाद से घर वालो ने मेरे से कुछ भी बोलना बंद कर दिया लेकिन हमारी बातचीत में कोई अंतर नही था | कुछ समय बाद जब मैं टीचर को ट्रेनिग देने जाने लगा, सभी को घर पर बताया की मैं टीचरो को पढने के लिए जाता हूँ | उसके बाद से पापा के पास परिवार से जिसका भी कॉल आया उन्होंने पूछा कि अभी आपका बेटा क्या करता है | पापा ने पूरे गर्व से कहां की मेरा बेटा टीचर्स को पढता है, साथ ही गाँव जाके बच्चो को पढता है | उसके बाद से आज तक घर में कोई भी काम हो मेरे से जरुर पूछा जाता है | परिवार में अब और लोगो को मेरा उदहारण दिया जाता है |

“घर वालों से ठीक से बात ना हो पाने से लेकर, अपने काम पर उन्हें  गर्व करा पाने और घर में पैसे लगा पाने तक, मैंने एक लम्बा सफ़र तय किया है। इस लेख के ज़रिए मैं एक जगह रुक कर, इस बात पर पीछे मुड़कर मुस्कुरा पाया!”

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घर पर परिवार में दोस्तों ने कॉलेज में सभी ने बहुत ताने मरे लेकिन मुझे अपने काम पर गर्व और विश्वास था | जो लोग मुझे जिस काम के लिए ताने मरते थे आज वह सब मुझे उसी काम के लिए शाबाशी देते है, और ये मेरे लिए एक बड़ी बात है। उम्मीद करता हूँ की मैं आगे भी खुद को ऐसे हाई बेहतर बनाता रहूँ, और खुद पर भरोसा और गर्व दोनो बनाए रखूँ। 
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Anjali finds her 'rhythm'! :)

11/10/2022

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संगीत में कुछ तो बात है, कि मन अच्छा हो और जी खोल के नाचने का माहौल हो तो सारा दुःख हल्का कर दे। मुझे संगीत सुनना हमेशा से बहुत पसंद है। और दोस्तों के साथ जन्मदिन  पर मैं नाच भी लेती थी, पर ज़्यादा सिर्फ़ फ़िल्मी गीतों पर ही।

और फिर आया हमारे स्वतंत्र तालीम का चौथा जन्मदिन, जब हम सभी ने सोचा की हम धूम-धाम से इसे मनाएँगे। संगीत, नाटक, नाच-गाना, क़िस्से-कहानियाँ सब होंगे! जहां एक तरफ़ बहुत से लोग स्टेज प्ले यानी नाटक का हिस्सा थे, रिद्धि दीदी ने मुझे आइडिया दिया कि क्यूँ ना मैं इस बार एक पर्फ़ॉर्मन्स देना तय करूँ, वो भी क्लासिकल! कथक! मुझे लगा मैं कर भी पाऊँगी या नहीं, और कहीं मैं कथक करती हुई अटपटी ना लगूँ। मगर एक वो दिन था, एक आज का दिन है। मैं कथक से अब तक जुड़ी हुई हूँ, और निरंतर सीखती-सिखाती आ रही हूँ। बच्चों को सिखाने, उनके साथ कथक करने से मैं अपनी कला और रियाज़ दोनो को और पक्का भी कर पाती हूँ।

मैने अपना पहला सेशन k.k. academy ke क्लास 5 और क्लास 6 के बच्चो के साथ लिया। शुरू में थोड़ी सी घबराहट ज़रूर हुई क्यूँकि मैं पहली बार कथक सीखने के बजाए सिखाने गयी थी। मैंने शुरुरात उन्हें कथक का इतिहास बताते हुए, कथक के सबसे बड़े गुरु, और इस कला के अनेक घरानों के बारे में बताने से करी। वह सब इतने ध्यान से मेरी बात सुन रहे थे, कि मेरे अंदर हिम्मत आ गयी। सबसे पहले मैंने उन्हें मुद्राएँ समझायीं, दिखायीं, और उनकी मेकिंग करवाई जो बच्चे बहुत अच्छे तरीके से किया। उन्होंने तो सारी मुद्राओं के नाम भी याद कर लिए थे जो सबसे बड़ी बात थी।

इसके बाद हमने थोड़ी सी मेकिंग भी की! और बच्चों ने उसे खूब एंजोय किया। हाथों को आकार देना, उन पर टेप लगाना, और मुद्राओं के शेप में लाकर उन्हें पेपर में ढालना - हर एक प्रक्रिया मजेयदार रही। मैं अचंभित इस बात से नहीं थी कि बच्चे इतने समझदार हैं, पर मैं अचंभित इस बात से थी कि मैं उन्हें कुछ नया सिखा पा रही थी! सच कहूँ तो कथक मुझे शौक़ से बढ़कर लगता है। जब अकेले में मैं खुद के लिए नाचती हूँ, या अपने कथक के स्टेप्स प्रैक्टिस करती हूँ, नए गीतों पर उन्हें ढालती हूँ, तो मुझे बहुत सुकून मिलता है। मगर वो सुकून एक तरफ़, और बच्चों को इस कला से रूबरू करा पाने का सुकून एक तरफ़!

उम्मीद करती हूँ कि मुझे और भी बहुत सी चीजें सीखने मिलें, जिन्हें मैंने आगे बच्चों को भी सिखा पाऊँ। और मैं हमेशा यूँ ही अपने अंदर, और अपने आस-पास की दुनिया में भी संगीत और कथक के ढेरों रंग भर्ती रहूँ!
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Sunil Goes to Design School!

11/10/2022

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Two months ago, one of our rock-solid support systems, Sunil went to Institute of Crafts and Design in Jaipur to pursue Design. “And it’s so refreshing to see his journey so far”, said Alisha, our Outreach Lead, who recently had a conversation with him and came back to us with a wide smile on her face. 

His new favorite subject is ‘Elements of Design.' “It allows us to play around with colors and textures beautifully”, he said. More than that, Sunil spoke very highly of his teachers there and how easy it is for him to talk to them. ​
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Sunil has never before lived away from his family, and it was a big step for him to take this plunge to pursue his design dream. Every day is a new lesson for him. He’s living his brand new college and hostel life. He has never lived like that before. From learning to stay alone, enjoying freedom but still taking care of oneself, to learning to self-regulate - and work on his growth, he’s doing it all gradually. More than his batchmates, he’s friends with his seniors. “I learn so much from them and they’re all so endearing and patient”, he adds. Sunil told us how sports and his other interests and knowledge also helped him become friends with other people. He’s also engaging with many people who are not from our country. 

While most things have been great, Sunil does struggle with English. He still doesn't feel as confident and fluent in the language. It's happened once or twice where after a class, he has had to enquire from classmates what all the teacher said, but there also are classes where the language is mixed. 

“Despite a very clear language barrier, I’m able to connect with them. I’m realizing that small talk goes a long way and I'm learning one day, one class, one sentence at a time”, he told us. 


This also brings us to Sunil's biggest learning, which is exploring by the day. College is teaching Sunil how to explore subjects. “The environment of the college is extremely free, teachers do not nudge us but allow us to learn at our own pace. They believe in our creativity and it shows”, he said. Colleges, and especially design colleges now, don't go by textbooks. Students are encouraged to look for deeper meanings, knowledge, and truth by themselves. It is what makes their art, theirs. Lest it's all the same theories. How much one explores, decides that extra ounce of experience, creativity, perspective, and knowledge in them. In the future, Sunil wants to work with children and young people from low socio-economic backgrounds on design and education, and impart knowledge and access to those who don't have it. 

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"Everybody deserves a place in a good school, college, and job, or a safe space where they can grow. I want to be able to contribute to bridging the education, design, and access gap for them."

“Do you miss home?", I asked him. "A lot", he said. It was rather tough for Sunil to take this step, since he was the go-to person for his parents for a lot of things, and happily so. But he had to do this for himself, and perhaps also his family’s growth. “I worry about things a lot but I’m happy seeing them happy. Every time we get on calls, they give me so much love and wishes.” He stays connected and talks to his parents and sister every day. Another part of 'home' he misses is his friends and family at Swatantra Talim. There are days he spends in his classroom being reminded of his Swatantra Talim. Classrooms, friends, and college shape a young person's mindset and stay with them forever. And we’re so glad that Sunil has found his place in a college that upholds not only his creativity but also his values. Sunil was recently be home for Diwali and caught up on everything and we were all elated to see him!

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Story of Sunil - A designer in Making

7/20/2022

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Sunil Kumar Sahu, a student of Swa-Aangan Aashiana has made it to a world-class design institute against all odds. He has secured AIR-35 in national entrance examination of Indian Institute of Craft and Design, Jaipur.
​To know more about the struggles and accomplishments of Sunil, please watch the video below:
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Reflection on “The Gears of My Childhood”

7/13/2021

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The title The Gears of My Childhood written by Seymour Papert raises many questions and sparks as I reflect on my own life experiences, both of my own childhood experiences and being an educator experiencing my student’s learning experiences. The word Gear metaphorically meant to me a slight push that put things in motion for you to learn from your own experiences.
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In the words of Vinod our mentor

3/21/2014

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मैं, विनोद कुमार, स्वतंत्र तालीम शिक्षण केंद्र रमद्वारी में जुलाई 2013 से कार्यरत हूँ। इस संस्था का संचालन श्रीमान राहुल अग्रवाल व श्रीमती रिद्धि अग्रवाल जी करते हैं। केंद्र में लगभग अड़तालीस (48) बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं। सर और मैडम जी प्रतिमाह लगभग 5 बार केंद्र पर उपस्थित होकर शिक्षण कार्य में नई तकनीकियों को जोड़कर बच्चों को तालीम देते हैं, जिस में कला, हस्तशिल्प, खेल आदि गतिविधियाँ शामिल हैं। केंद्र पर मैं लगभग 5 घंटे शिक्षण कार्य करता हूँ, जिससे मेरा भी अनुभव बढ़ता है। 

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Kishore's visit to Swa-Aangan

2/13/2014

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Today, I went with Rahul and Ridhi to their learning center, in a village called Ramdwari some 90 kms from Lucknow. Rahul and I had made the Arvind Gupta DC motor for today's class. They were thinking of doing a few sessions on energy with the older children, just exposing them to new ideas, try to draw out questions from them etc. 

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    Swatantra Talim, an initiative co-creating spaces both physical and mental for children to explore and learn. 

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